यमुनानगर हलचल। डीएवी गल्र्स कॉलेज की एनएसएस यूनिट-1 व 2 की ओर से छात्राओं तथा अभिभावकों को पटाखे व पराली न जलाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया गया।
जिसके तहत दाखिलें के लिए आई छात्राओं व उनके अभिभावकों को पटाखे व पराली जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में अवगत कराया गया। कॉलेज की कार्यवाहक प्रिंसिपल डॉ. आभा खेतरपाल, एनएसएस यूनिट इंचार्ज डॉ. मोनिका शर्मा व डॉ. निताशा बजाज ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
डॉ. खेतरपाल ने कहा कि पटाखे जलाने से कार्बन मोनाऑक्साइड, सल्फ्यूरिक नाइट्रिक व कार्बनिक एसिड जैसी जहरीली गैस वायुमंडल में फैलती है। इससे पर्यावरण तो प्रदूषित होता ही है, साथ ही मनुष्य के शरीर में कैंसर, जल स्त्रोत के दूषित होने की आशंका रहती है। दिल से जुड़ी बीमारियां बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि पटाखों से निकलने वाले कण सांस नली को अवरूद्ध कर देते हैं।
जिससे दमा के रोगियों की संख्या में इजाफा होने की आशंका बढ़ जाती है। पटाखों के धुएं से बुजुर्गों और दमा के मरीजों को ज्यादा परेशानी होती है। फुलझड़ी, अनार व चकरी तेज आवाज नहीं करते, पर धुआं ज्यादा छोड़ते है जो खतरनाक होता है। पटाखों से दीपावली पर वायु प्रदूषण बीस गुना और ध्वनि का स्तर 15 डेसीबल बढ़ जाता है।
डॉ. मोनिका शर्मा व निताशा बजाज ने कहा कि पराली जलाने से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। इसके अलावा खेतों की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है। जिसका किसानो को नुकसान उठाना पड़ता है। हालांकि केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश जारी कर पराली ना जलाने की बात कही है। साथ ही किसानों को इससे खाद बनाने का निर्देश दिए गए हैं। बावजुद इसके खेतों में पराली जलाने के मामले कम नहीं हो रहे हैं। जिसकी वजह से पर्यावरण तो प्रदूषित हो ही रहा है, साथ ही लोगों के स्वास्थ्य पर विपरित असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पटाखें व पराली जलाने से कोरोना पीडि़त लोगों में सांस संबंधी दिक्कतें बढ़ सकती है। मानवता के आधार पर व पर्यावरण संरक्षण के लिए पटाखे व पराली नहीं जलानी चाहिए।