भक्तामर पाठ ध्यान व भक्ति से करने पर होता है कष्टों का निवारण- मुकेश
यमुनानगर। श्री महावीर दिग बर जैन मंदिर रैस्ट हाऊस रोड के प्रांगण में 43 वें भक्तामर पाठ का वाचन राजेश जैन व रमेश जैन परिवार के सहयोग से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधान अजय जैन ने की तथा मंच संचालन महामंत्री पुनीत गोल्डी जैन ने किया। मंदिर संरक्षक सुभाष जैन व गिरीराज स्वरूप जैन विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभार भ दीप प्रवज्जलित कर किया गया। मुकेश जैन ने सभा को संबोधित करते हुये कहा कि भक्तामर विधान एक अनोखी विधा है, जिसको भिन्न-भिन्न रंग रूप में पाया जाता है। इसके अध्ययन व पाठ से इसका चमत्कार देखने को मिलता है। भक्तामर को पाठ ध्यान व भक्ति से करने पर कष्टों का निवारण होता है, दुखों की समाप्ती होती है। इसका प्रभाव सभी कष्टों को मिटा जीवन को सुखमय व शांतिमय बनाता है। हिमान्शु जैन कहा कि भगवान किसी को कुछ नहीं देते, परंतु भगवान की भक्ति सब कुछ दे देती है। पुण्य रूपी सुगंध से भक्तों के मन खिल जाते है। आत्मा रूपी वृक्ष से लिपटे हुये कर्म रूपी बंधन खुल जाते है। उन्होंने कहा कि आदिनाथ स्त्रोत जो भक्ति रस का अद्वितीय महाकाव्य है उसकी रचना उस समय हुई जब राजा भोज के दरबार में कवि कालीदास तथा वररूची ने साम्प्रदायिकता वश आचार्य प्रवर मानतंगु को राजा की आज्ञानुसार पकड़वाकर 48 तालों के अंदर कोठरियों में बंद करवा दिया उस समय आचार्य श्री ने आदिनाथ स्त्रोत की रचना की। नितिन जैन ने कहा कि स्त्रोत के प्रभाव से ताले व जंजीरे अपने आप टूट गये और वह मुक्त हो गए। अंत में राजा ने हार स्वीकार कर आचार्य से क्षमा मांगी। आचार्य श्री से प्रभावित होकर जैन धर्म अपना लिया। पाठ के उपरांत आरती की गई। पाठ के अंत में आये हुये अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर जैन समाज के गणमान्य व्यक्ति, महिलाये तथा बच्चे उपस्थित रहे।