Buria : 7 से 14 अक्टूबर तक प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में होगा कार्यक्रम

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Yamunanagar Hulchul : Surya Kund Mandir Mahant giving information.

Jagadhri Hulchul : प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में 7 से 14 अक्टूबर तक ब्रह्मलीन श्री श्री 108 अखिलानंद ब्रह्मचारी महाराज की वार्षिक आराधना के उपलक्ष्य में अलौकिक दिव्य विराट महायक्ष व मूर्ति प्रतिष्ठा कार्यक्रम का आयोजन होगा। मंदिर महंत व कार्यक्रम के संयोजक डा. गुणप्रकाश चैतन्य महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि कार्यक्रम को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस दौरान 100 कुंडी श्री महाचंडी महायज्ञ का आयोजन होगा। इसमें एक करोड़ आहुतियां डाली जाएंगी और 400 से अधिक विद्वान तथा देश के अनेक हिस्सों से श्रद्धालु कार्यक्रम में पहुंचेंगे।

यह रहेगा कार्यक्रम

11 सितंबर को भूमि पूजन कार्यक्रम किया जाएगा। 10 सितंबर को गणेश चतुर्थी के अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। आलौकिक दिव्य विरोट महायज्ञ के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि यह महायज्ञ 22 वर्ष के पश्चात किया किया जा रहा है। इससे पहले ब्रह्मलीन श्री श्री 108 अखिलानंद ब्रह्मचारी महाराज ने इसका आयोजन कराया था। कोरोना काल में इस समाज में लगभग हर किसी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति हुई है। ऐसे में यह महायज्ञ जीवन की दिशा बदलने का काम करेगा। तन-मन-धन का स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

इस दौरान 10 वर्षीय शुकदेव स्वरूप श्री ऋषभदेव श्रीमद्भागवत कथा करेंगे। यह कथा सात अक्टूबर से शाम 3 बजे से छह बजे तक होगी। महायज्ञ के लिए संपूर्ण सामग्री राजस्थान से मंगवाई जाएगी। इसके अलावा 7 अक्टूबर को तुलसी यात्रा का आयोजन होगा। यह यात्रा मंदिर से शुरू होकर विभिन्न मार्गों से होती हुई मंदिर परिसर में पहुंचेगी। 14 अक्टूबर को ही मंदिर प्रांगण में ब्रह्मलीन श्री श्री 108 अखिलानंद ब्रह्मचारी महाराज की मूर्ति प्रतिष्ठा का आयोजन होगा।

चैतन्य महाराज ने बताया कि करीब एक एकड़ भूमि पर यज्ञशाला का निर्माण राजस्थान के कारीगर बांस, सरकंडा व रस्सी की मदद करेंगे। महायज्ञ में दिव्य औषधियों की आहुति दी जाएगी। दिन में जहां यज्ञ होगा तो वहीं शाम 3 से 6 बजे तक वृंदावन वासी 10 वर्षीय आचार्य ऋषभदेव हर रोज भागवत कथा का वाचन करेंगे। रात को श्री राम नाम संकीर्तन होगा।

यज्ञकुंड देवी मां के मुख, आहुत भोजन

डॉ. गुण प्रकाश चैतन्य महाराज ने बताया कि यज्ञ देवताओं को प्रशन्न करने की एक प्राचीन पद्धति है। इसमें निराकार यज्ञ देव अग्नि के रूप में प्रकट होते हैं। यत्र के सौ कुंड महा योगनी मां महामाया के सौ मुख होंगे। इसमें करोड़ आहुति के द्वारा करोड़ बार उनके मुख में भोजन जाएगा। जब देवी मां प्रशन्न होगी तो धरा पर सुख-शांति आएगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए जो 108 यजमान होंगे उनका पहले से ही शुद्धीकरण किया जाएगा। उनकी पूजन विद्धि द्वारा शुद्धिकरण किया जाएगा। उन्हें देव रूप प्रदान किया जाएगा ताकि यज्ञ का पूरा फल प्राप्ति हो सके। इस महायज्ञ में पूरे देश के परम विद्यान भाग लेंगे। यज्ञशाला को बहुत ही भव्य रूप दिया जाएगा।

यज्ञ से किसी भी प्रकार के कष्ट से मुक्ति संभवन

चैतन्य महाराज ने बतया कि हवन व यज्ञ पूजा की सबसे प्राचीन पद्धति है। इससे वातावरण तो शुद्ध व अनुपम होता ही हम अपने किसी भी तरह के कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं। यज्ञ के लिए शारीरिक, विचारिक रूप से शुद्ध होने के साथ ही यह भी जरूरी है कि यज्ञ कराने वाले विद्वान भी इसे संपूर्ण कराने के लिए उपयुक्त हो। गलत मंत्रों के उच्चारण से इसका प्रभाव बदल सकता है।
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