रादौर। इंक लाब मंदिर गुमथला में सोमवार को वीर नारायण सिंह का बलिदान दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मंदिर के संस्थापक एडवोकट वरयामसिंह ने ग्रामीणों के साथ मिलकर शहीद के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रंद्धाजलि भेंट की। इस अवसर पर इंकलाब मंदिर के संस्थापक वरयामसिंह ने कहा कि वीर नारयण सिंह बहुत वीर और स्वाभिमानी थे। नारायण सिंह के पिता रामराय सिंह का देहान्त 1830 में हुआ। जिसके बाद जमींदारी की देखरेख नारायण सिंह के जिम्मे आयी। उन्होंने अपने पिता का अनुसरण करते हुए अपने क्षेत्र की जनता के हित के लिए व्यवस्था बनाई। इससे वे बहुत लोकप्रिय हो गये और लोग उन्हें राजा मानने लगे। 1856 में वर्षा न होने के कारण खेती सूख गयी,तो नारायण सिंह ने अपना निजी अन्न का भंडार खोल दिया। जब उससे भी काम नहीं चला, तो उन्होंने कसड़ोल के एक व्यापारी माखनसिंह से अन्न माँगा। उसने अन्न देना तो दूर, ऐसे कठिन समय में लोगों से जबरन लगान वसूलना शुरू कर दिया। इससे नारायण सिंह क्रोध में भर गये। उन्होंने माखनसिंह का अन्न भंडार लूट कर जनता में बाँट दिया। माखनसिंह की शिकायत पर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स डी इलियट ने नारायण सिंह को बन्दी बनाकर रायपुर के कारागार में डाल दिया। कुछ देशभक्त जेलकर्मियों के सहयोग से कारागार से बाहर तक एक गुप्त सुरंग बनायी और नारायण सिंह को मुक्त करा लिया। जेल से मुक्त होकर वीर नारायण सिंह ने 500 सैनिकों की एक सेना गठित की और 20 अगस्त, 1857 को सोनाखान में स्वतन्त्रता का बिगुल बजा दिया। नारायण सिंह में जब तक शक्ति और सर्मथा रही, वे छापामार प्रणाली से अंग्रेजों को परेशान करते रहे। काफी समय तक यह गुरिल्ला युद्ध चलता रहा पर आसपास के जमींदारों की गद्दारी से नारायण सिंह फिर पकड़े गये और उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। मुकदमे में वीर नारायण सिंह को मृत्युदंड दिया गया। उन्हें 10 दिसम्बर, 1857 को जहाँ फाँसी दे दी।