Radaur Hulchul : चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र दामला द्वारा गांव बकाना में बासमती धान में कीटनाशक का सुरक्षित तथा न्यायपूर्ण उपयोग विषय पर किसान मेले का आयोजन किया गया। इस अवसर पर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.बलदेव राज कांबोज ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की।
इस अवसर पर कृषि विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. राम निवास, जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. जसविंदर सिंह सैनी, कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ संयोजक डॉ. नरेंद्र गोयल, डॉ रितेश शर्मा प्रधान वैज्ञानिक एपीडा, डॉ. महासिंह जिला विस्तार विशेषज्ञ पादप संरक्षण, सतीश कंबोज, सुनील प्रताप सिंह प्रधान जिला किसान क्लब उपस्थित रहे।
इस अवसर पर कुलपति डॉ. बलदेव राज कांबोज ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों को कृषि के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर रहना चाहिए और जो चुनौतियां किसानों को उठानी पड़ रही रही हैं उनमें पृथ्वी का बढ़ता तापमान, मृदा की घटती उर्वरा शक्ति, जल का गिरता स्तर, फसलों में बढ़ते कीट व बीमारियों के प्रकोप और सबसे मुख्य यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल व अंबाला में उत्पादित किया जाने वाला बासमती चावल जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी लोक प्रियता खोता जा रहा है
इसका मुख्य कारण बासमती चावल में अंधाधुन रसायनिक उर्वरकों व दवाइयों का छिडक़ाव सामने आ रहा है। इस समस्या को दूर करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र किसानों को छिडक़ाव तकनीकी व दवाइयों के न्याय पूर्ण प्रयोग से संबंधित जानकारी व प्रशिक्षण दे रहे हैं।
कृषि विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. राम निवास ने बताया कि वह फसल में जरूरत पडऩे पर ही छिडक़ाव आदि कार्य करें तथा वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई दवाइयों की मात्रा का प्रयोग करें, संतुलित दवाइयों व उर्वरक प्रबंधन करते समय उचित समय, सही मात्रा व उचित उर्वरक व दवाई का प्रयोग किया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि कीट रोग व खरपतवार नियंत्रण के लिए उचित प्रबंधन वह रोकथाम से संबंधित कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा छिडक़ाव की उन्नत तकनीकी पर व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं इसके अलावा व्यक्तिगत किसान को भी जानकारी दी जाती है।
उन्होंने बताया कि छिडक़ाव की उन्नत तकनीकी के माध्यम से किसान की लागत कीमत में कमी के साथ-साथ उसकी फसल की गुणवत्ता पर भी अनुकूल प्रभाव है तथा बासमती चावल जैसी फसल जोकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी जिसका निर्यात किया जा सकता है। हमारे देश का बासमती चावल अंतरराष्ट्रीय बाजार में रसायनों की अत्यधिक मात्रा पाए जाने की वजह से निर्यात में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
इस अवसर पर डॉ. नितेश शर्मा प्रधान वैज्ञानिक पीड़ा ने किसानों को अंधाधुन रसायनिक उर्वरकों के दवाइयों के प्रयोग से बारे कृषि उत्पादों की गुणवत्ता का स्तर घटता जा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप उपभोक्ता को उठाना पड़ रहा है तथा इन उत्पादों के निर्यात पर भी बहुत बड़ा दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है।
उन्होंने बताया कि बासमती चावल में उपयोग की जाने वाली तकनीकी उर्वरक प्रबंधन तकनीकी को बदला जाना चाहिए तथा जरूरत पडऩे पर ही इन रसायनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। वैज्ञानिकों के परामर्श के बिना इन रसायनों रसायनिक दवाइयों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ संयोजक डॉक्टर एनण्केण् गोयल ने किसानों को मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए फसल अवशेष प्रबंधनए हरी खाद का प्रयोगए कंपोस्टए वर्मी कंपोस्ट तथा संतुलित उर्वरक प्रबंधन के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी और बताया कि उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच कराने के बाद ही किया जाना उचित रहता है तथा वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार ही उर्वरकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
डॉ.महाजन जिला विस्तार विशेषज्ञ पादप रोग प्रबंधक ने इस अवसर पर किसानों को बासमती धान में लगने वाले कीड़े व बीमारियों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी और सही प्रबंधन उचित रोकथाम के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कीट प्रबंधन के लिए सही समय वह उचित दवाई का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।
जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. जसविंदर सिंह सैनी ने मेरी फसल मेरा पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करने के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस पोर्टल पर सभी फसलों का रजिस्ट्रेशन किया जाना चाहिए ताकि किसान को उचित मूल्य मिल सके। उन्होंने धान के बदले अन्य फसलें लगाने पर किसान को मिलने वाले फायदे के बारे में भी जानकारी दी तथा फसल अवशेष प्रबंधन में उपयोग होने वाली मशीनरी पर अनुदान राशि के बारे में भी विस्तार पूर्वक जानकारी दी।