Bilaspur : कपालमोचन तीर्थ

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कपालमोचन तीर्थ स्थल का अपना ही महत्व है। इसीलिए वेदों में वर्णित भी है कि सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार।

कपाल मोचन : यमुनानगर से लगभग 20 किलोमीटर दूर बिलासपुर में कपालमोचन तीर्थ स्थल का अपना ही महत्व है। इसीलिए वेदों में वर्णित भी है कि सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार। यहां द्वापर, त्रेता कलयुग का इतिहास सिमटा है। शास्त्रों के अनुसार यहां श्रीराम, श्रीकृष्ण, पांडव कौरव भी पितरों की शांति के लिए आए। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद श्रीकृष्ण अर्जुन ने यहां शस्त्र धोकर पितरों की शांति के लिए पूजा अर्चना की।

महर्षि वेद व्यास की कर्मस्थली बिलासपुर में तीर्थ राज कपाल मोचन में हर साल कार्तिक पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) पर ऐतिहासिक अंतरराज्यीय मेला लगता है और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। यह भारत के पवित्र स्थलों में से एक है। श्री कपाल मोचन मेले में देश के विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां के तीनों पवित्र सरोवरों-कपाल मोचन सरोवर, ऋण मोचन सरोवर व सूरज कुण्ड सरोवर में क्रमवार स्नान करने के लिए आते हैं। वहीं राजा अकबर के भी यहां आने के साक्ष्य मिलते हैं। बाबा दुधाधारी की मजार भी लोगों की आस्था का केंद्र मानी जाती है।

श्री कपाल मोचन मेला में आने वाले श्रद्धालुओं को अधिक से अधिक सुविधाएं मिलें, ऐसे यहां पर इंतजाम और प्रयास होते हैं। मेले में सफाई व्यवस्था, दवाईयों के प्रबन्ध, अस्थाई शौचालयों, पेयजल के प्रबन्ध, सड़कों की मरम्मत, बिजली का प्रबन्ध, खाद्य सामग्री, दूध की आपूर्ति, बैरिकेटिंग, पुलिस प्रबन्ध व अन्य प्रबन्ध देखने वाले होते हैं।
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कपालमोचन तीर्थ में ही सबसे अधिक मान्यता सिख धर्म के श्रद्धालुओं की है। यहां पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी और दसवीं पातशाही श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दो गुरुद्वारे हैं। श्री गुरु नानक देव जी ने अपना जन्मदिन यहां ठहर कर मनाया था। जबकि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने दस्तारबंदी की प्रथा यहीं से शुरू की थी। भंगानी का युद्ध जीत कर वापसी के दौरान गुरु साहिब यहां 52 दिन तक रुके और सिख समुदाय के लोगों को दस्तार का हुकम दिया।

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