मनुष्य अपने कर्मों के बंधन से रहता है दुखी : महासाध्वी

धूम-धाम से हुआ जैन संत समूह का प्रवेश
यमुनानगर। जैन धर्म के मतानुसार बसंत ऋतु के आगमन पर जितने भी साधु संत समाज में भ्रमण कर रहे होते है वर्षा कालीन में एक जगह अपना प्रवास कर लेते है, जिससे जीव हिंसा प्रर्यावरण एवं वातावरण पर नियंत्रण किया जा सके। इसी श्रृंखला में जैन स्थानक मॉडल टाऊन के सभागार में महासाध्वी श्री कमलेश जी महाराज साहब की सुशिष्या महासाध्वी श्री विशवास जी महाराज साहब व सुसाध्वी श्री आरजु जी महाराज साहब का जैन स्थानक मॉडल टाऊन के सभागार में मंगल प्रवेश हुआ। प्रवेश प्रकाश समारोह स्थानक सभागार में बड़ी धूम-धाम से स ापन्न हुआ। जैन समाज के पदाधिकारियों ने विभिन्न क्षेत्रों से आकर कार्यक्रम में भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधान राकेश जैन ने की तथा संचालन सतीश जैन ने किया। महासाध्वी जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुये कहा कि जैन समाज की सभी आमनाओं को एक सूत्र में बंध कर अपना शक्ति प्रदर्शन करना चाहिये। उन्होंने कहा कि दिगा बर, श्वेता बर, तेरापंथी व स्थानकवासी सभी को एक दूसरे के कार्यक्रमों में भाग लेकर जैन एकता का संदेश देना चाहिये। उन्होंने आगे कहा कि साधु संतो एवं साध्वीयों का चार्तुमास का मिलना बड़े ही भाग्यपूर्ण होता है। जिसमें साधु संत एक जगह रह कर भक्ति की लहर प्रवाहित करते है। उन्होंने कहा कि अपनी शक्ति के अनुसार त्याग, तप, तपस्या व स्वाध्याय किया जाना चाहिए। इस चार्तुमास में विशेष बात यह है कि प्रतिदिन महामंत्र ण्मोकार का महापाठ भक्तों के द्वारा किया जायगा। उन्होंने कहा की मनुष्य अपने कर्मों के बंधन से दुखी रहता है, यदि वह अपने कर्मों को मुक्त कर दे तो वह सुखी हो सकता है। उन्होंने कहा कि श्रावक के जीवन में संयम नियंत्रित रूप से मर्यादित रहना चाहिये। उन्होंने इस मर्यादा को विस्तार से समझाते हुये कहा कि मर्यादा को तीन प्रकार से अपने जीवन में ग्रहण कर सकते है। खानापान जिसमें सब्जियां, खाद्य सामग्री एवं आटा-दाल आदि को सीमित मात्रा में प्रयोग करें। इसके लिये एक निश्वित मात्रा में 10-15 प्रकार की सब्जियां व खाद्य सामग्री को प्रयोग किये जाने का संकल्प किया जाना चाहिये। इस अवसर पर समाज के गणमान्य व्यक्ति, महिलाओं तथा बच्चों ने भाग लिया।
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