– परशुराम जन्मोगत्स व पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग।
– 26 अप्रैल को है परशुराम जी का एक अरब 97 करोड़ 12 लाख 21 हजार 121वां जन्मदिन।
– हरियाणा ब्राह्मण परिसंघ सदस्य घर रहकर मनाएंगे 40वां भगवान परशुराम जन्मोत्सव।
– परशुराम जी की पूजा करने से बच्चों में चरित्र एवं वीर रस के संस्कार पैदा होते हैं।
– घर-परिवार में सुख-समृद्धि हेतु अपने घर के मुख्यद्वार पर तेल के दो दीपक अवश्य जलायें
– डाक्टर्स, सफाई स्टॉफ, प्रशासन, पुलिस, ट्रक ड्राईवर्स के स्वास्थ्य की करेंगे प्रार्थना।
यमुनानगर। कोरोना महामारी संकट पर सरकार की गाईडलाईन्स के चलते हरियाणा ब्राह्मण परिसंघ द्वारा 26 अप्रैल को होने वाले भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव पर कोई आयोजन नहीं करेगा। बल्कि यह सदस्योंव द्वारा अपने-अपने घर से ही मनाया जाएगा। यह कहना है परिसंघ के संस्थापक पुरुषोत्तम दास शर्मा का।
श्री शर्मा ने कहा है कि इस दिन हमें कोरोना संकट की घड़ी में लोगों की सेवा करने में जुटे डाक्टर्स, सफाई स्टॉफ, प्रशासन, पुलिस, ट्रक ड्राईवर, सहित उन सभी लोगों के स्वास्थ्य के लिए भगवान परशुराम जी से प्रार्थना करनी चाहिए। यह सभी लोग अपनी जान की बाजी लगाकर वीरता का प्रदर्शन कर हमारे लिए दिन-रात प्रयासरत हैं। उन्होंने कहा कि इस संकट काल में वह सरकार के कार्यों की सराहना करते हैं और उसके द्वारा जारी गाईडलाईन्सन को सभी को मानने की सलाह देते हैं।
श्री शर्मा ने आगे कहा कि अक्षय तृतीय त्रेता युग की प्रथम पुण्य तिथि है, जो सब फलों को देने वाली है। भगवान परशुराम जी का जन्म सतयुग तथा त्रेता के संधिकाल में शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया, पुनर्वसु नक्षत्र में रात्री के प्रथम प्रहर में जमदग्नि रेणुका की कुक्षि से हुआ। श्री परशुराम जी ब्रह्मा जी के पुत्र भृगु के प्रपोत्र, मर्यादा धाम और चिरंजीवी हैं। जन्म से ही इनमें ब्राह्मी धर्म व क्षात्र धर्म पूर्ण रूप में रहा। श्री शर्मा ने कहा कि भगवान परशुराम के सिमरण मात्र से ही सभी विपदाओं का नाश हो जाता है। परशुराम जी की महिमा का वर्णन करते हुए श्री शर्मा ने आगे कहा वे कष्ट हरने वाले और सुखों के दाता हैं और उन्होंने केवल अपने पितृहंताई नरेश के साथ युद्ध किया था। क्योंकि उस नरेश ने कामधेनु गाय प्राप्त करने के लिए उनके पिता जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी थी और उनका आश्रम नष्ट कर दिया था। यह व्यक्तिगत प्रतिशोध की घटना है, इसके अतिरिक्त उनका किसी भी राजवंश से युद्ध नहीं हुआ और उनके इक्कीस बार अधर्मी राजाओं के साथ युद्ध का वर्णन कहीं नहीं मिलता, इसलिए यह मिथ्या प्रचार है। जबकि इक्कीस का अर्थ पूर्ण होना है। इस युद्ध के बाद भगवान परशुराम जी ने युद्ध का भाव छोड़ दिया और समन्तक यज्ञ में समस्त भूमि व धन को कश्यप मुनि को दान में देकर महिन्द्र पर्वत पर तपस्या के लिये चले गये।
उन्होंंने कहा कि 26 अप्रैल को हम परशुराम जी का एक अरब 97 करोड़ 12 लाख 21 हजार 121वां जन्मदिन मनाएंगे। भगवान परशुराम शिव के शिष्य हैं अत: रूद्र रूप हैं। विष्णु अंशी के कारण हरि स्वरूप हैं। इसलिए भगवान परशुराम जी ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश रूपायक हैं। भगवान परशुराम जी से प्रेरणा लेने की बात कहते हुए श्री शर्मा ने कहा कि विशेषकर ब्राह्मणों को शिक्षा लेनी चाहिए क्योंकि ब्राह्मण राजगद्दी का नहीं परंतु गुरू गद्दी का दीप्यमान रत्न है। ब्राह्मण बैरागी व त्यागी होता है। तपोनिष्ठ व धर्म निष्ठ होता है और धन का लोभी नहीं होता। अत: हम संकल्प लें कि हम संतुष्ट रहें, समाज के सुख व समन्वय का प्रयास करें। श्री शर्मा ने बताया कि इस दिन गौधुली के समय भगवान परशुराम का जन्म हुआ था और इस दिन घर-परिवार में सुख-समृद्धि हेतु अपने घर के मुख्यद्वार पर तेल के दो दीपक अवश्य जलायें। आज परशुराम जी ब्राह्म-विष्णु-महेश के प्रतीक हैं एवं उनकी पूजा करने से बच्चों में वीर रस के संस्कार पैदा होते हैं, जो देश के अच्छे नागरिक व चरित्रवान बनकर समाज की सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा करेंगे। श्री शर्मा ने कहा दिनांक 9 अप्रैल, 1993 के अनुसार हम वर्षों से केंद्र सरकार से भगवान परशुराम जन्मोत्सव पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने के लिए कहते आ रहे हैं। आज भी हम अपनी अपनी इसी मांग पर कायम हैं और पूर्ण विश्वास है कि सरकार कोरोना खत्म होते की इस बारे जरूर विचार करेगी।
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