Yamunanagar Hulchul : World Water Day celebrated in Damla (Radaur)
Radaur, 23 March. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र दामला द्वारा विश्व जल दिवस मनाया गया। इस अवसर पर यमुनानगर के विधायक घनश्याम दास अरोड़ा ने मुख्य अतिथि के रुप में शिरकत की। इस अवसर पर घनश्याम दास अरोड़ा ने पानी को व्यर्थ न बहाने, जल संरक्षण की शपथ दिलाई और संदेश दिया कि जल ही जीवन है।
उन्होंने बताया कि जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव जाति के लिए उपयोगी हैं या जिनके उपयोग में आने की संभावना है। पूरे विश्व में धरती का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है किंतु इसमें से 97 प्रतिशत पानी खारा है जो पीने योग्य नहीं है।
पीने योग्य पानी की मात्रा सिर्फ 3 प्रतिशत है इसमें से भी 2 प्रतिशत पानी ग्लेशियर या बर्फ के रूप में है। सही मायने में मात्र 1 प्रतिशत पानी ही मानव के लिए उपयोग हेतु उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी पर मनुष्य के अलावा जितने भी जीव-जंतु पशु-पक्षी विद्यमान हैं वह सभी जल के कारण ही अपनी जीवन लीला चला पा रहे हैं और अपनी संतति को बढ़ा पा रहे हैं और यदि जल की विकट समस्या सामने खड़ी हो जाए तो जीव जंतु व इंसान का जीवन दुर्लभ बन जाता है।
इसी समस्या को दूर करने के लिए हम इंसानों में जल के सदुपयोग के लिए जागृति विकसित होनी चाहिए,जिससे पानी को व्यर्थ में ना बहाया जाए, उसका सदुपयोग किया जाए और मानव जीवन के साथ-साथ अन्य प्राणियों के भी जीवन को सुखमय बनाया जाए।
उन्होंने घरेलू जल संरक्षण जैसे दाढ़ी बनाते समय, ब्रश करते समय, नहाते समय, बर्तन धोते समय नल तभी खोलें जब सचमुच पानी की जरूरत हो तथा गाड़ी धोते समय पाइप की बजाए बाल्टी-मग का प्रयोग करें। इससे काफी पानी की बचत होती है। इसके अलावा यदि सार्वजनिक जगहों पर नल की टोटियां खराब हो गई है या पाइप से पानी लीक हो रहा हो तो तुरंत संबंधित विभाग को इसकी जानकारी एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर दें।
उन्होंने बताया मेरा पानी मेरी विरासत योजना हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के द्वारा लांच की गई है। इस योजना के अंतर्गत हरियाणा के डार्क जोन में शामिल क्षेत्रों में धान की खेती छोडऩे तथा धान के स्थान पर अन्य वैकल्पिक फसलें लगाने के लिए किसानों को 7 हजार रुपए प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।
इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ संयोजक डॉ. एन.के. गोयल ने बताया कि जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण के कारण प्रति व्यक्ति के लिए उपलब्ध जल की मात्रा लगातार कम हो रही है, जिससे उपलब्ध जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है, जहां एक और पानी की मांग लगातार बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर जल प्रदूषण और कृषि में उपयोग किए जाने वाले रसायनों व अन्य मिलावट के कारण उपयोग किए जाने वाले जल संसाधनों की गुणवत्ता तेजी से घट रही है।
उन्होंने फसल उत्पादन में पानी के सदुपयोग करने वाली विधियां व फसल विविधीकरण के बारे में भी संपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ज्यादा पानी की जरूरत वाली फसल के बाद कम पानी की जरूरत वाली फसल लगानी चाहिए तथा सिंचाई की ऐसी विधियां अपनाई जानी चाहिए, जिससे पानी व्यर्थ में खराब ना हो, इसके लिए फवारा विधि, टपका विधि, बूंद बूंद सिंचाई विधि अपनाई जानी चाहिए, जिससे 40 से 60 प्रतिशत पानी की बचत संभव है, फसल की उत्पादन क्षमता व गुणवत्ता में भी सुधार होता है।
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