समाज का एक नया और विकसित स्वरूप है उभरता
यमुनानगर। काफी समय से राज्य में बेटों के लिए दुल्हन तलाशना अब मुश्किल होता जा रहा है। इसका मुख् य कारण लिंगानुपात है, और अब यह समस्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। कन्याओं की संख्या धीरे-धीरे बढौतरी तो आ रही है। ऐसे में लोगों की सोच, समझ और विचारों में बदलाब लाना किसी योजना, कानून अथवा जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता। अपितु लोगों को इसके लिए जागरूक होना पड़ेगा। ऐसे परिवारों की जिलें में अथवा राज्य में फिर भी कमी नहीं है जहाँ पर ईश्वर ने केवल कन्यायें ही दी है फिर भी परिवार के माता पिता सकारात्मक सोच रखते हैं। बेटा-बेटी एक समान अभियान कितना कारगर सिद्ध हो रहा है, इसका सार्थक रूप एक जीता-जागता नमूना अभी सामने आया है। शास्त्री कालोनी निवासी पुष्पेन्द्र जैन व सारिका जैन परिवार जिनके पास बेटा न होकर दो बेटियों ने जन्म लिया। पिता ने दोनों बेटियों आकांक्षा जैन व अशिंता जैन को बेटों की तरह लाड प्यार से लालन-पालन किया। इस सब में खास बात यह देखने में आई कि जिस समय पुष्पेन्द्र जैन ने अपनी बेटी आकांक्षा की शादी की शादी में पुष्पेन्द्र जैन की छोटी बेटी अशिंता जैन ने एक लड़केे की सभी जिम्मेदारियां व रस्म निभाते हुये अपनी बड़ी बहन को विदा किया। पुष्पेन्द्र जैन का कहना है कि यदि लड़कियां साहस व विशवास के साथ अपनी जिम्मेदारियां लड़कों की तरह निभायें तो नि:सन्देह समाज का एक नया और विकसित स्वरूप उभरता नजर आयेगा। समाज का स्तर ऊंचा उठेगा और मां-बाप को बेटों की कमियां कभी भी महसूस नहीं होगी। गर्व है कि बेटियों पर जो इस प्रकार लड़के की जगह कर्तव्य निभाते हुये मां-बाप का साथ देती है। सारिका जैन का कहना है कि बेटी आजीवन आपकी बेटी रहेगी। वह हमेशा सुख-दु:ख में आपके काम आती रहेगी। बेटा न होने का कोइ गम नहीं। दो कन्या होने पर भी लड़का न होने का कोई दु:ख नहीं हैं। अशिंता ने बताया कि उन्होंने यह निश्चय किया था मैं कभी भी अपने माता-पिता को लड़का न होने का एहसास नहीं होने देगी, और इसी लिये उन्होंने अपनी बड़ी बहन की शादी में भाई वाली सभी जिम्मेदारियां निभाई।