समर्पण ही भक्ति का दूसरा नाम : बी.आर.चोपड़ा

यमुनानगर! संत निरंकारी सत्संग भवन में रविवार को साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया जिसकी शुरूआत पावन अवतारवाणी के शब्द गायन से हुई। सत्संग की अध्यक्षता डेरा बस्सी पंजाब से आए लेखक महात्मा बी.आर. चोपड़ा जी व मंच संचालन सुधीर जी ने किया।
साध संगत को सम्बोधित करते हएु श्री बी.आर. चोपड़ा जी ने कहा कि ईश्वर सर्वव्यापी है हर जगह है। हम सब परमात्मा की संतान है। यह बात हम सभी जानते है परमात्मा की पहचान भी सभी धर्म ग्रंथों में दर्ज है।  हम जब भी मिलकर बैठे तो परमात्मा की चर्चा करें। हमारे जीवन में ज्ञान प्राप्ति के बाद जो बदलाव आया है, जो विशालता आई है उसकी चर्चा करे। हम बोल तो देते है कि हमें कुछ नही करना पड़ा और यह परमात्मा का ज्ञान गुरू की कृपा से सहज ही मिल गया। इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमने 5 प्रण जो सतगुरू से किए है, हमें उन्हें कभी नही भूलना चाहिए। उन्होंने पहलें प्रण के विषय में विस्तार से बताते हुए कहा कि तन-मन-धन परमात्मा की देन है हमें इस पर अंहकार नहीं करना चाहिए। हमें रूप,रंग, कद-काठी पर अभिमान नही करना।वहीं मन से जुड़े सब रिशते, जाति, विद्या, धन, दौलत, जमीन-जायदाद आदि का किसी भी प्रकार का अहंकार नही करना। यह सब प्रभु की देन है और प्रभु की देन समझ कर ही प्रयोग करना है। तन-मन-धन को परमात्मा को अर्पण करते हुए बिना किसी भेदभाव के जीवन जीना है। जब हम तन-मन-धन परमात्मा को अर्पण करते है तो हमारी सभी परेशानियां, इच्छाएं, भाव सभी परमात्मा को अर्पण हो जाते है, जीवन सरल हो जाता है।

श्री चोपड़ा ने आगे स्पष्ट करते हुए कहा कि यह सुंदर काया, विवेकशील मस्तिष्क, नाते-रिशते, मित्र, परिवार ईश्वर के उपहार है और इसे प्रभु की अमानत समझ कर प्रयोग करना चाहिए। ईश्वर ने यह सब दिया है और ईश्वर सब कुछ वापिस भी ले सकता है। इसलिए गुरसिख समर्पण के भाव से जीवन जीता है वह तन-मन-धन का स्वयं को मालिक न मान कर परमात्मा की अमानत समझ कर इन सब का प्रयोग कर जीवन में सुख मानता है। ऐसे भाव ही जीवन में अहंकार को दूर कर खुशिया लाते है। अहम को भेट चढाना ही सर्वस्व समर्पित करना है, यहीं भक्ति है। इस अवसर पर अनेक वक्ताआंे ने अपने विचारों, गीतों व कविताओं के माध्यम से मिशन का सत्य संदेश दिया व भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने सत्संग में भाग लिया।

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