यमुनानगर। जिले के दो विज्ञान अध्यापको ने राष्ट्रीय बाल विज्ञान सम्मेलन के 26वें अधिवेशन के लिए राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला में भाग लिया। 26वीं व 27वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान सम्मेलन 2018-19 का नया मुख्य/उप विषय आ चुके हैं। इसके आगाज में हरियाणा राज्य में इन विज्ञान गतिविधियों को करवाने का उत्तरदायित्व राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता एनजीओ हरियाणा विज्ञान मंच रोहतक का है। इसकी पहली कड़ी के रूप में क्षेत्रीय रिसोर्स पर्सन्स प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन करनाल में किया गया। जिसमें यमुनानगर, करनाल, पंचकूला, कुरुक्षेत्र, अम्बाला, कैथल, जींद, सिरसा, हिसार, पानीपत, सोनीपत के जिला समन्वयकों व हर जिले से दो दो विज्ञान अध्यापकों व प्राध्यापकों ने भाग लिया। उपस्थित प्रशिक्षुओं को मुख्य प्रशिक्षक डॉ0 डॉली, रणबीर सिंह दहिया, कृष्ण वत्स, सतबीर नागल, अजमेर चौहान, चंद्रप्रकाश, दर्शनलाल बवेजा जयवीर सिंह, कुलदीप आदि ने प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण के दौरान वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में कहा कि बच्चे ऐसे प्रोजेक्ट बना कर लाएं जिससे ऊर्जा संरक्षण के लिए कोई ठोस हल निकलता हो। लोग अपने घरों में सोलर सिस्टम लगवाएं। इन सोलर सिस्टम की कीमत कम हो। हम ऐसे प्रयास करें कि इंडिजिनियस अनुभवों (देसी ज्ञान) का जन जन तक प्रचार हो, सस्टेनेबल डिवेलपमेंट, नवचार, नव प्रवर्तन, खाद्य सुरक्षा, जीवनशैली में सुधार लाया जा सके। उपविषयों के सभी बिंदुओं पर भी चर्चा की गई। हरियाणा विज्ञान मंच रोहतक के सतबीर नागल ने गत वर्ष राज्य के प्रतिभागियों की राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित उपलब्धियों ओर कमियों से प्रतिभागियों को अवगत करवाया। कमियों को दूर करने के टिप्स दिए और हरियाणा के प्रदर्शन की समीक्षा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि हमारे राज्य के प्रदर्शन और परियोजनाओं की गुणवत्ता में बहुत सुधार आया है जो बाल वैज्ञानिकों और मार्गदर्शक अध्यापकों की मेहनत व लगन के कारण ही सम्भव हो सका है।
इस कार्यशाला में विज्ञान अध्यापकों/प्राध्यापकों को इस मौलिक शोध संबधित प्रशिक्षण दिया गया कि वो किस तरह बच्चों को मौलिक शोध करने की ओर प्रेरित करने के लिए कार्य करवा सकते हैं। गत 25 वर्षों से चल रही इस प्रतियोगिता में देशभर के बच्चे भाग लेते हैं। इस बाल विज्ञान सम्मेलन में जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अपना मौलिक शोध कार्य करके अपना शोध पत्र पढ़ते है। ये ही एकमात्र ऐसी प्रतियोगिता है जिसमे बच्चों को
जिला स्तर पर सलेक्ट होने पर जिला बाल वैज्ञानिक, फिर राज्य पर सलेक्ट होने पर राज्य बाल वैज्ञानिक,
फिर नेशनल पर सलेक्ट होने पर राष्ट्रीय बाल वैज्ञानिक का मेडल/अवार्ड व प्रमाण पत्र मिलता है। बेहतरीन शोध कार्य को अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लेने का अवसर भी मिलता है।
जिन बालको को अनुसंधान के क्षेत्र में करियर बनाना होता है उनके लिए इस प्रतियोगिता को ‘बच्चों की पीएचडी’ कहा जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि देश से इंजीनियरिंग की पढ़ाई का दौर अब गिरावट की और है। ऐसे परिस्थितियों में देश मे साइंस रिसर्च लाइन में जाने का जबरदस्त स्कोप है। देश को विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय रिसर्च लैब्स, डीआरडीओ, इसरो, सेनाओं व बड़े बड़े पीजी कॉलेजों को युवा रिसर्चर्स व स्वतन्त्र वैज्ञानिकों (फ्रीलांसर साइंटिस्ट्स) की कमी से जूझना पड़ रहा है। इस प्रतियोगिता के माध्यम से बच्चों के बीच साइंस रिसर्च लाइन में जाने की जागरूकता का संचार किया जाता है। सरकार की यह सोच बहुत दूरदर्शी है इसलिए अध्यापकों से प्रार्थना की जाती है कि वो आपने विद्यार्थयों के शोध व इनोवेटिव टेलेंट को पहचान कर उन्हें आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करें। मौके पर ही इग्नाईट 2018 प्रतियोगिता सम्बन्धित जानकारी भी दी गई। ये अध्यापक अपने अपने जिले में जाकर इग्नाईट आइडिया प्रतियोगिता करवाएंगे।
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