रादौर। मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती मां का पुण्य स्मृति दिवस प्रजापित ब्रह्मकुमारी इश्वरीय विश्वविद्यालय बुबका रोड रादौर में रविवार को श्रद्धापूर्वक मनाया गया। मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती के 53वें पुण्य स्मृति दिवस पर उनकी जीवनगाथा पर प्रकाश डालते हुए राजयोगिनी बीके राज बहन ने कहा कि मातेश्वरी का लौकिक नाम राधे था। उनका जन्म 1919 में अमृतसर में हुआ। उनकी एक बडी बहन थी। जिनका नाम गोपी था। उनके पिता सोने चांदी का व्यापार करते थे व देसी घी के थोक व्यापारी भी थे। राधे अपनी मां और छोटी बहन गोपी के साथ हैदराबाद अपनी नानी और मामा के घर आ गई। उन्होंने कहा कि मातेश्वरी को सभी प्यार से मम्मा कहते थे। मातेश्वरी जगदंबा ने 24 जून 1965 में अपनी पार्थिव देह का परित्याग किया था। मातेश्वरी आयु में छोटे हुए हुए भी गुणों की खान थी। उन्होंने सिर्फ प्यारी और ममतामयी मां ही नही बल्कि अपने अनुभव से सिखाने वाली एक अच्छी टीचर व गुरु भी थी। मातेश्वरी का कहना था कि मनुष्य अपने कर्मों की निकृष्टता के कारण ही गिरा है। कर्मों को श्रेष्ठ बनाने से ही व्यकित महान बन सकता है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सर्वात्माओं को राजयोग की अनुभूति करवाई। मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती का जीवन तप और योगबल से ओतप्रोत था। वह गंभीरता, धौर्यता व सहनसीलता की खान थी। इस अवसर बीके राजू भाई ने कहा कि हमें ऐसी महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर उनके बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए। उनके जीवन की मुख्य विशेषताएं जो उनके जीवन में कूट कूट कर भरी हुई थी। इस अवसर पर ब्रह्मभोज का भी आयोजन करवाया गया। जिसमें सैकडों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।
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