– शिव मंदिर बस स्टैंड पर चल रही है कार्तिक मास की कथा
यमुनानगर हलचल। जो मनुष्य तुलसीदल से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं वह पुनः मां के गर्भ में नहीं जाते, अर्थात् जीवन मरण के चक्कर से मुक्त हो जाते हैं। तुलसी दल में समस्त पुष्कर इत्यादि तीर्थ तथा गंगा इत्यादि सभी पवित्र नदियां वास करती हैं।
उक्त शब्द आचार्य कमलेश शास्त्री जी महाराज ने श्री शिव मंदिर बस स्टैंड पर कार्तिक मास की कथा का श्रद्धालुओं को श्रवण पान करवाते हुए कहे। उन्होंने कथा में प्रसंग वश तुलसी व आंवले के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कार्तिक मास के व्रत व उद्यापन में तुलसी की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तुलसी भगवान विष्णु को अधिक प्रीति प्रदान करने वाली मानी गई है।
उन्होंने कहा कि जिसके घर में तुलसीवन है वह घर तीर्थ रूप होता है तथा वहां उस घर में सवपने न पश्यन्ती यम किकर अर्थात यम के दूत उस घर को स्वपन में भी नहीं देखते प्रत्यक्ष की तो बात बहुत दूर। तुलसी का पौधा सदैव सभी पापों का नाश करने वाला शुद्ध प्राणवायु तथा कामनाओं को देने वाला है। आचार्य जी ने कहा कि जो श्रेष्ठ मनुष्य तुलसी का पौधा लगाते हैं वह यमराज को नहीं देखते। नर्मदा का दर्शन, गंगा का स्नान और तुलसी का संसर्ग यह तीनों एक समान शास्त्रों में बताए गए हैं। जो तुलसी की मंजरी से संयुक्त होकर अपने प्राणों को छोड़ता है वह सैकड़ों पापों से मुक्त होकर श्री यमराज के बंधन से मुक्त हो जाता है।
उन्होंने बताया कि तुलसी को छूने से कायिक, वाचिक मानसिक आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य तुलसीदल से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं वह पुनः माता के गर्भ में नहीं जाते अर्थात जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जहां तुलसी के पौधे की छाया होती है वहां पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए, जो प्रतिदिन आदर पूर्वक तुलसी की महिमा सुनता है वह सब पापों से मुक्त होकर ब्रह्मलोक जाता है। इसी प्रकार आंवले का महान वृक्ष भी सभी पापों का नाश करने वाला है। आंवले का वृक्ष भी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है इसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य गौ दान करने का फल प्राप्त करता है।
जो मनुष्य कार्तिक में आंवले के वन में भगवान विष्णु की पूजा करता है तथा उसकी छाया में बैठकर विश्राम और भोजन करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य आंवले की छाया के नीचे कार्तिक में ब्राह्मण दंपत्ति को एक बार भी भोजन देकर भोजन करता है वह अन्न दोष से मुक्त हो जाता है। लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को सदैव आंवले से स्नान करना चाहिए। नवमी, अमावस्या ,सप्तमी, सक्रांति, रविवार ,चंद्र ग्रहण तथा सूर्य ग्रहण के दिन आंवले का सेवन करना वर्जित है। जो मनुष्य आंवले की छाया में बैठकर पिंडदान करता है उसके पितर भगवान विष्णु के प्रसाद से मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
कार्तिक मास में जब सूर्य तुला की सक्रांति में होता है तब सभी तीर्थ, ऋषि, देवता और सभी यज्ञ आंवले के वृक्ष में वास करते हैं इसलिए आंवले एवं तुलसी की महत्ता का वर्णन करने में ब्रह्मा जी भी समर्थ नहीं है इसलिए धात्री और तुलसी जी की जन्म कथा सुनने से मनुष्य अपने वंश सहित भक्ति को प्राप्त करता है।