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पेपर मिल ग्राउंड यमुनानगर से शुरू होकर मंदिर में तक निकाली जाएगी तुलसी कलश यात्रा
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2500 महिलाएं होंगी तुलसी कलश यात्रा में शामिल, सायंकाल होगी काशी की विश्व प्रसिद्ध महाआरती
Yamunanagar Hulchul : प्राचीन सिद्ध सूर्य कुंड मंदिर अमादलपुर में 100 कुंडीय श्री महाचंडी महायज्ञ से होगा विश्व का कल्याण, एक करोड़ आहुतियां डाली जाएंगी एवं 2500 महिलाएं होंगी तुलसी कलश यात्रा में शामिल। यह जानकारी दी संत गुण प्रकाश चैतन्य जी महाराज ने। कल से गांव अमादलपुर में 100 कुण्डीय श्री महाचंडी महायज्ञ की तैयारियों के सिलसिले पत्रकार वार्ता में डॉ. गुण प्रकाश चैतन्य जी महाराज ने बताया कि विश्व कल्याण के लिए यह यज्ञ किया जा रहा है।
7 अक्टूबर को दोपहर 2 बजे यमुनानगर पेपर मिल ग्राउंड से कलश यात्रा तुलसी कलश यात्रा निकाली जाएगी जो कि प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर तक जाएगी। तुलसी कलश यात्रा में लगभग 2500 महिलाएं शामिल होंगी। डॉ. गुण प्रकाश चैतन्य जी महाराज ने बताया कि 100 कुंडिया श्री महाचंडी महायज्ञ प्रतिदिन सुबह 7 बजे से 12 बजे तक एवं दोपहर 3 से शाम 6 बजे तक होगा। इसके साथ-साथ श्रीमद् भागवत कथा संत प्रवचन दोपहर 1 बजे से 5 बजे तक प्रतिदिन, श्री राम नाम संकीर्तन रात 8 बजे से रात 11 बजे तक प्रतिदिन होगा। पूर्णाहुति भंडारा 14 अक्टूबर को होगा।
मंत्रजाप, शंखनाद करते हुए डाली जाएंगी एक करोड़ आहुतियां :
काशी की विश्व प्रसिद्ध महाआरती प्रतिदिन शाम को 5:30 बजे आयोजित की जाएगी। महायज्ञ के लिए मंदिर परिसर में प्राकृतिक साधनों से बनी यज्ञशाला का निर्माण किया गया है। यह यज्ञशाला बांस व सरकंडो की सहायता से बनाई गई है। इस आयोजन में 10 वर्षीय सुखदेव स्वरूप ऋषभदेव जी भी श्रीमद् भागवत कथा करेंगे। संत त्रयम्बकेश्वर चैतन्य जी महाराज ने बताया कि यज्ञ परिसर में कोरोना नियमों का पूरी तरह से पालना की जाएगी।
उन्होंने कहा कि आज के इस अवसाद भरे दौर में हर व्यक्ति किसी न किसी परेशानी व दिक्कत से जूझ रहा है और यह बात सर्वविदित है कि जिस स्थान पर भी यज्ञ होता है वहां के आसपास का क्षेत्र पूरी तरह से पवित्र व शुद्ध हो जाता है और यह बात सिद्ध भी हो चुकी है। एक करोड़ आहुतियां इस पवित्र यज्ञ में डाली जाएंगी। मंत्र जाप होगा, शंखनाद होगा।
व्यवस्था संचालन के लिए लगाई ड्यूटियां : गर्ग
चेयरमैन रामनिवास गर्ग ने जानकारी देते हुए बताया कि विशाल यज्ञ के लिए सभी लोगों का सहयोग प्राप्त हो रहा है और सभी लोगों की अलग-अलग डयूटियां बांट दी गई है ताकि सारी व्यवस्था सही रूप से संचालित हो सके। यह क्षेत्र का सौभाग्य है कि इन दिव्या संत जनों का पूरे जिला यमुनानगर के लोगों व आसपास के लोगों को आशीर्वाद व सानिध्य प्राप्त हो रहा है। डॉ. गुणप्रकाश चैतन्य जी महाराज ने बताया कि सभी लोग अपने परिवार व मित्रों सहित इस 100 कुंडिया श्री महाचंडी महायज्ञ में शामिल हों और विश्व कल्याण में अपना योगदान दें।
इस अवसर पर हरियाणा व्यापार कल्याण बोर्ड चेयरमैन रामनिवास गर्ग, प्रबंधक समिति से अमित गोयल, भाजपा जिला मीडिया प्रभारी कपिल मनीष गर्ग, मुख्य यजमान विमल जैन, व्यवसायी मुख्य यजमान अमित गोयल, उद्योगपति राजेश मस्करा, शिवकुमार चांडक मुम्बई, मुख्य यजमान विनोद गोलचा, सुशील गोयल, विनोद राणा, भाजपा जिला मीडिया प्रभारी कपिल मनीष गर्ग को सक्रिय जिम्मेवारी मिली।
यह है मंदिर का इतिहास
ऐतिहासिक प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर जिले के साथ-साथ प्रदेश का गौरव है। देश में जितने भी सूर्यदेव मंदिर हैं, उनमें अमादलपुर और उड़ीसा का कोणार्क मंदिर सबसे बड़ा है। मंदिर इतिहास की बात करें तो यहां लगे बोर्ड के मुताबिक त्रेता युग के राजा मानधाता के सूर्यवंशी राजवंश की 126वीं पीढ़ी के राजा सुमित्र ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। यहां पर सूर्य ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता। न ही यहां पर ग्रहण के समय अंधेरा होता है।
पुजारी के अनुसार सूर्यग्रहण के समय मन्दिर के प्रांगण में सूर्य कुंड इस प्रकार से बना है कि सूर्य की किरणें इस प्रकार पड़ती हैं कि वो कुंड मे ही समा जाती हैं। कुंड के पानी की बात करें तो दिन में यह सूर्य देव की कृपा से लाल, हरा व पीले रंग में परिवर्तित होता है। कुंड में नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाता हैं। यहां पर वर्षों से 24 घंटे श्री राम चरित मानस का पाठ हो रहा है। इसकी शुरुआत श्री श्री 1008 श्री अखिलानंद ब्रह्मचारी जी महाराज ने की थी।
यहां पर लक्ष्मी नारायण मंदिर, हनुमान मंदिर, शिव मंदिर व राम दरबार है। हर रोज सुबह 5 बजे और शाम साढे 7 और साढे 8 आरती का आयोजन किया जाता है। गांव अमादलपुर प्राचीन समय में सिंधुवन नाम से भी जाना जाता था। सेवादारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भगवान राम के वंशज राजा सुमित्र ने कराया था।
ऐसी मान्यता है कि एक बार अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण जी वन विहार करते हुए यहां यमुना किनारे आए थे। अज्ञातवास के दौरान पांडव भी यहां रुके थे। महाभारत के युद्ध से पहले वीर अर्जुन ने श्री कृष्ण की प्रेरणा से पाशुपात्र की प्राप्ति के लिए इस जगह पर भगवान शंकर की तपस्या की थी। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि युधिष्ठिर यक्ष संवाद इसी कुंड पर हुआ। इस दौरान अर्जुन भगवान शिव से पाशुपत लेने कैलाश गए।
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