Home बात पते की मूक-बधिर का सही इलाज है छोटी उम्र में कॉकलियर इमप्लांट सजर्री : Dr. Ashok Gupta

मूक-बधिर का सही इलाज है छोटी उम्र में कॉकलियर इमप्लांट सजर्री : Dr. Ashok Gupta

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मूक-बधिर का सही इलाज है छोटी उम्र में कॉकलियर इमप्लांट सजर्री : Dr. Ashok Gupta
ईएनटी माहिर डा. अशोक गुप्ता ने बच्चों में मूक-बधिर संबंधी किया जागरूक
प्रति हजार एक नवजात होता है मूक-बधिर का शिकार
Yamunanagar Hulchul : नवजात बच्चों में मूक-बधिर से सावधान करते हुए फोर्टिस मोहाली के ई.एन.टी. माहिर Dr. Ashok Gupta ने कहा जन्मजात मूक-बधिर की समय पर पहचान तथा तुरंत कॉकलियर इमप्लांट सजर्री ही गूंगे व बहरेपन का सही मायने में सही इलाज है। डा. गुप्ता यहां मूक-बधिर की बीमारी तथा अति-आधुनिक इलाज तकनीक कॉकलियर इमप्लांट सजर्री के बारे बोल रहे थे।
Dr. Gupta ने विश्व स्तरीय अध्यन्न रिपोर्टस के हवाले से बताया कि प्रति 1000 नवजात बच्चों में औसतन एक बच्चा जन्मजात मूक-बधिर का शिकार होता है, यदि उसका सही समय पर सही इलाज नहीं होता तो वह गूंगेपन का भी शिकार हो जाता है, परंतु ज्यादातर बच्चे की यह बीमारी की शिनाख्त ही नहीं होती तथा या फिर ज्यादातर देरी के साथ पता चलता है। इसलिए बच्चे के पैदा होने के बाद उसकी माहिरों से लगातार जांच करवाते रहना चाहिए, ताकि ऐसी बीमारी होने की सूरत में बच्चे का बिना देरी इलाज हो सके।
Dr. Ashok Gupta ने बताया कि यदि 6 माह के अंदर ऐसे मूक-बधिर बच्चे की कॉकलियर इमप्लांट सजर्री हो जाए, तो बेहद शानदार नतीजे आते है। देरी की सूरत में पीडि़त बच्चे के दिमाग के बोलने वाले हिस्से पर 6 साल की उम्र उपरांत सिर्फ देखकर समझने वाला दिमागी विकास हो जाता है। इसलिए जितनी जल्दी कॉकलियर इमप्लांट सजर्री होगी, नतीजे उतने ही सकारात्मक होंगे।
Dr. Gupta ने बताया कि कॉकलियर एक बेहद संवेदनशील तथा सूझवान यंत्र (डिवाइस) होता है, जिसको आप्रेशन (सजर्री) द्वारा लगाया जाता है। यह प्रक्रिया करीब 2 घंटों के आप्रेशन के साथ पूरी हो जाती है तथा मरीज को 2-3 दिन में अस्पताल में से छुट्टी मिल जाती है।
डा. गुप्ता ने बताया कि जन्मजात बहरे बच्चों की इस बीमारी का जल्द पता लगाने के लिए भारत सरकर द्वारा ही हर अस्पताल में जांच के बारे योजना की हुई है, परंतु यह प्रभावशाली तरीके के साथ लागू नहीं हो रही।
अब तक 400 से अधिक बच्चों की सफल कॉकलियर इमप्लांट सजर्री कर चुके Dr. Gupta ने बताया कि जो बच्चे जन्म उपरांत देरी के साथ रोते हैं, उन बच्चों में इस बीमार का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे बच्चों के ऑडियोमेटरी (ए.बी.वी.आर. एंड ए.एस.एस.आर) टेस्टों की जरूरत होती है। इस उपरांत सिटी स्केन तथा कनपटी की हड्डी की एम.आर.आई द्वारा यह पता लगाया जाता है कि बच्चे के कान में घोगे जैसा सुनने वाला कुदरती यंत्र है भी या नहीं।
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