1971 में भारत व पकिस्तान के बीच हुए युद्ध में रादौर इंडियन नेवी के पहले जवान राजकुमार हुए थे शहीद

रादौर। 1971 में भारत व पकिस्तान के बीच हुए युद्ध में इंडियन नेवी में तैनात रादौर के राजकुमार भी शहीद हुए थे। राजकुमार उस वक्त रादौर के ऐसे पहले शहीद थे, जिन्होंने देश की रक्षा में अपनी शहादत दी थी। उस वक्त शहर के लोगों में शहीद राजकुमार की शहादत पर इतना दु:ख पंहुचा था की, पूरा का पूरा बाजार उनकी शहादत को नमन करते हुए बंद हो गया था। लेकिन दुखत बात ये है की शहीद राजकुमार की शहादत को इतना लम्बा अरसा बीतने के बावजूद शासन – प्रशासन ने आज तक शहर के पहले शहीद राजकुमार के नाम पर किसी भी चौंक चौराहे या किसी सरकारी संस्थान का नाम उनके नाम पर रखने की जहमत तक दूर उनकी शहादत को याद तक नहीं किया जाता। जिसके चलते आज शहीद का परिवार गुमनानी की जिंदगी जीने पर मजबूर है। शहीद के भाई सुदेश कुमार ने बताया की उसके पिता अमी सिंह भी सेना में रहे थे, तो उसके भाई राजकुमार को भी सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने का जज्बा था। इसी जज्बे के बतौलत RADAUR 9राजकुमार इंडियन नेवी में भर्ती हुए थे। सन 1971 में जब भारत – पाक के बीच युद्ध हुआ था, इसी दौरान उसका भाई राजकुमार जोकि इंडियन नेवी में तोफ चलाने का कार्य करता था, पाकिस्तान की एक पनडुब्बी ने उनके जहाज पर हमला कर दिया था, जिसमे उसका भाई शहीद हो गया था। एक सवाल के जवाब में शहीद के भाई सुदेश ने बताया की आज जब देश की रक्षा में सैनिक शहीद होते है तो उसकी भी अपने भाई की याद आँखे नम हो जाती है और उसे दु:ख इस बात का आता है की उसकी भाई की शहादत को आज तक शासन – प्रशासन द्वारा अनदेखा किया जा रहा है। वही शहर निवासी वरिष्ठ नागरिक प्रेम स्वरूप गुलाटी ने बताया की राजकुमार के शहादत की खबर सबसे पहले उन्हें ही पता चली थी, क्यौकिं उस वक्त टेलीग्राम के जरिए ही संदेश पंहुचता था और शहर के ज्यादतर लोग उनके पास ही टेलीग्राम पढ़वाने के लिए उनके पास पंहुचते थे। गुलाटी ने बताया की उन्हें भी इस बात का काफी दु:ख है की शहर में आज तक न तो इस शहीद के नाम पर कोई स्मारग बनाया न ही किसी संस्थान का नाम रखा, जिसके चलते ही शहर के पहले शहीद राजकुमार के बारे में आज की पीढ़ी कुछ नहीं जानती। ऐसे में सरकार व प्रशासन को चाहिए की रादौर के पहले शहीद राजकुमार को पूरा मान सम्मान देते हुए उनके नाम पर शहर में किसी चौंक या संस्थान का नाम रखना चाहिए व साथ ही शहीद के परिजनों को भी पूरा मान सम्मान देना चाहिए।

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Author: Yamunanagar Hulchul

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