Home धर्म | समाज हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया ईद उल अज्हा का पर्व

हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया ईद उल अज्हा का पर्व

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हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया ईद उल अज्हा का पर्व
यमुनानगर छछरौली। छछरौली क्षेत्र की सभी मस्जिदों में ईद उल अज्हा की नमाज बड़े हर्ष और उल्लास के साथ अदा की गई। ईद उल अज्हा के मौके पर बच्चे बूढ़े सुुबह सेे सभी नए नए कपड़े पहन कर मस्जिदों में जमा होने लग गए थे। सभी मस्जिदों में 9:00 बजे ईद उल अज्हा की नमाज अदा की गई और नमाज अदा करने के बाद क्षेत्र में सुख शांति बनी रहे इसके लिए मस्जिदों में दुआ भी मांगी गई। नमाज के बाद सभी लोगों ने एक दूसरे को गले मिल ईद उल अज्हा की मुबारकबाद दी। छोटे-छोटे बच्चों ने भी एक दूसरे के साथ गले मिलकर ईद उल अज्हा की मुबारकबाद दी। खिजराबाद मदरसा में ईद के मौके पर नमाज़ पढ़ने आए नमाजियों को संबोधित करते हुए पूर्व डिप्टी स्पीकर अकरम खान ने कहा कि ईद-उल-अज़हा आपसी भाईचारे का त्योहार है। इस्लाम धर्म में कई हजार वर्ष पहले इस्लाम धर्म के नबी हजरत इब्राहिम  ने अल्लाह के हुकुम पर कुर्बानी की परंपरा शुरू की थी। उसके बाद यह लगातार जारी है समय के साथ-साथ हालात बदलते गए पर यह रसम लोग आज भी अदा कर रहे हैं। उन्होंने नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में आए हुए सभी लोगों से अपील करते हुए कहा कि ईदुल अज्हा के मौके पर हम जो कुर्बानी करते हैं। हमें चाहिए कि सिर्फ उस जानवर की बलि देनी चाहिए जिस पर सरकार की तरफ से कोई पाबंदी नहीं है।
इस्लामिक पैगंबर हजरत इब्राहिम के समय से मनाया जाता है ईद उल अज्हा
खिजराबाद मदरसा के कारी सदुजमा ने बताया कि इस्लाम धर्म  के पैगंबर हजरत इब्राहिम को आजमाइश के लिए अल्लाह की तरफ से हुक्म हुआ था कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दे। हज़रत इब्राहीम ने अपने दाएं बाएं देखा और बहुत सोचने के बाद यह फैसला लिया कि उसके आसपास सबसे अजीज ओर प्यारी चीज तो उनका बेटा हजरत इस्माइल है। तो हजरत इब्राहिम ने जैसा कि हुक्म हुआ था उनकी पालना करते हुए वह अपने बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी देने का मन बना कर उसको कुर्बान करने लगे। तो जहां पर उन्होंने अपने बेटे को लेटाया  हुआ था। तो अचानक से उनके बेटे की जगह एक भेड़ ने ले ली थी। और उनके बेटे के स्थान पर उस भेड की कुर्बानी हुई थी। तब से लेकर आज तक इस्लाम धर्म में ईद-उल-अज़हा त्यौहार को बहुत मान्यता दी जाती है। और ईद-उल-अज़हा के मौके पर जिन लोगों पर कुर्बानी करना वाजी बनता है उनको कुर्बानी के लिए कहा गया है। समाज में सभी तरह के लोग हैं कई लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि वह कुर्बानी नहीं कर सकते उनके लिए कुर्बानी करने में छूट दी हुई है। पर जो व्यक्ति आर्थिक स्थिति से मजबूत है उसके लिए कुर्बानी करना वाजिब बताया गया है।