Home कृषि | किसान फसल अवशेषों को जलाते रहे तो अनेक बीमारियों का सामना करना पडेगा : डाॅ कांबोज

फसल अवशेषों को जलाते रहे तो अनेक बीमारियों का सामना करना पडेगा : डाॅ कांबोज

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फसल अवशेषों को जलाते रहे तो अनेक बीमारियों का सामना करना पडेगा : डाॅ कांबोज
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यमुनानगर! चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार के स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र दामला द्वारा खंड रादौर के गांव बकाना में किसान प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण शिविर का मुख्य उद्देश्य किसानों मे यथास्थान फसल अवशेष प्रबंधन व कृषि मशीनरी के बारे जागरूकता पैदा करना था। किसान प्रशिक्षण शिविर में किसानों को सम्बोधित करते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र दामला के संयोजक एवं वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बीआर काम्बोज ने कहा कि जुलाई-18 में एक परियोजना शुरू की गई है जिसके माध्यम से किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन बारे प्रेरित किया जाएगा और फसल अवशेष प्रबंधन में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को जानकारी दी जाएगी।
डॉ. बीआर काम्बोज  ने किसानों को बताया कि फसल अवशेष जलाने से हमारी कृषि भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होती है और भूमि, जल व वातावरण के साथ-साथ अनेक बीमारियां भी फसलों में आती है।  फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से संसाधन संरक्षण के साथ-साथ वातावरण को भी ठीक रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि रबी मौसम में धान की कटाई के बाद धान अवशेषों में गेहूं की बिजाई हैप्पी सीडर से करवाने के प्रदर्शन किसानों के खेतों में करवाए जाऐंगे व किसानों को उन्नत कृषि यंत्र हैप्पी सीडर, मल्चर, जीरो टिलेज मशीन इत्यादि उपलब्ध करवाई जाएगी ताकि किसान इन कृषि यंत्रों का प्रयोग कर फसल अवशेषों में अपनी फसल पैदा कर सकें और किसानों को फसल अवशेष जलाने की जरूरत ही न पड़े। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष जलाने से हमारा वातावरण काफी दूषित हो गया है जिसके हमें परिणाम देखने को भी मिल रहे है और यदि हम फसल अवशेषों को जलाते रहेगें तो आने वाले समय में वातावरण दूषित होने के कारण अनेक बीमारियों का सामना करना पडेगा और इसका असर हमारी कृषि पर भी निश्चित रूप से होगा।
ए कृषि विज्ञान केन्द्र दामला के वरिष्ठ मृदा वैज्ञानिक डॉ. नरेन्द्र गोयल ने किसानों को बताया कि धान की फसल में हमें संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए और धान में जिंक की कमी को दूर करने के लिए 750 ग्राम जिंक व 5 किलोग्राम यूरिया को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड में छिडकाव करने से धान की पैदावार में काफी बढौतरी होती है। केन्द्र के पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. रणबीर टाया ने किसानों से धान की फसल में होने वाली बीमारियों के लक्षण की रोकथाम के बारे विस्तार से चर्चा की और कहा कि हमें फसलों में अंधाधूंध रसायनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। केन्द्र के जिला विस्तार विशेषज्ञ डॉ. संदीप रावल ने धान की फसल में खरपतवार नाशी दवाईयों का प्रयोग करने की सलाह दी और कहा कि हमें धान की फसल में सिफारिशशुदा कीटनाशक दवाईयों का प्रयोग ही करना चाहिए। इस प्रशिक्षण शिविर में गांव बकाना के लगभग 30-35 प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कृषि से संबंधित जानकारियां हासिल की।

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