Home धर्म | समाज शास्त्री कालोनी की यूनिटी सैंटर के वरिष्ठ नागरिकों ने किया वार्षिक बसंत महोत्सव का आयोजन

शास्त्री कालोनी की यूनिटी सैंटर के वरिष्ठ नागरिकों ने किया वार्षिक बसंत महोत्सव का आयोजन

0
शास्त्री कालोनी की यूनिटी सैंटर के वरिष्ठ नागरिकों ने किया वार्षिक बसंत महोत्सव का आयोजन

बसंत पंचमी पर की जाती है देवी सरस्वती की पूजा- राजकुमार
यमुनानगर। शास्त्री कालोनी की यूनिटी सैंटर के सभागार में सीनियर सीटीजन सोशल वैलफैयर एसोसिएशन के तत्वधान में वार्षिक बसंत महोत्सव का आयोजन किया गया। मुख्‍य अतिथि के रूप में समाज सेवी गुलशन कुमार ने भाग लिया तथा विशिष्ठ अतिथि के रूप में एसो. के प्रधान जी. एस. राये उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता समाज सेवक केवल खरबंदा ने की तथा संचालन सचिव हरीश कुमार ने किया। राज कुमार शर्मा ने सभा को संबोधित करते हुये कहा कि बसंत पंचमी या श्रीपंचमी का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं और घर में पीले मीठे चावल व अन्य पकवान बनाये जाते है। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें बसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती थी और यह बसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से  उल्लेखित किया गया है। अशोक जल्होत्रा ने अपने संबोधन में कहा कि सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों की खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्राकट हुई। यह प्रकट एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। अंत में सीनियर वाई प्रैसिडेन्ट आर. के. जैन ने आये हुये अतिथियों को धन्यवाद किया। इस अवसर पर प्रमोद कुमार, तिलक राज, हरभजन सिंह, बलवंत सिंह बांगा, शिव खुराना, जगदीश चंद, एस. डी. सैयाल, आर. एन. बिन्द्र, गजेन्द्र सिंह, अमर दास, आर. सी. बजाज, आर. के. उप्पल, वेद दुरेजा, अशोक कालड़ा, रमेश गोयल व एस. पी. मैहता आदि उपस्थित रहे।